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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव }} <poem> ...
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{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
कितने पाकिस्तान
उग रहे कहाँ_कहाँ
उनके बोझ तले
छ्लनी-छलनी धरती
करती चीत्कार
जानता है आदमी
फिर भी
मानता नहीं है
हर पाकिस्तान
एक की भूख़
एक की यातना
एक पाकिस्तान
भिंडरावाले का मानस पुत्र
एक लादेन का
और ये सब
मानस पुत्र उस सत्ता के
जिसके लिए
मनुष्य से बड़ी
अपनी भूख़
बड़ी नहीं,
अनंत!
मानस पुत्र हैं ये
उस धर्म के
जिसकी आड़ में
कर लेते हैं वे
अपने लिए
एक नये धर्म का ईजाद
मनुष्यता की जगह
ले लेती है फिर बर्बरता
बर्बरता की अँधी सुरंग
उतरते हैं भेड़िये
निरीह और निर्दोष प्राणियों को सूंघते
औरों के पश्चाताप में
अपनी मुक्ति ढूँढते
उनकी राख से भी
जन्म लेते
हर बार
कितने-कितने पाकिस्तान
धरती को कहाँ
इन बन्दूकभाषियों से त्राण
आदमी करता
अपने ही दिये हुए जीवन से
आदमी को बेदखल
आदमी खोदता
आदमी के लिए खाई
आदमी ही धकेलता
आदमी को उसमें
आदमी ही जलाता
फिर आदमी की
कब्र पर दीया
आदमी ही
आदमी का कब्रिस्तान
ईश्वर तो यों ही बदनाम।
'''2'''
आदमी एक आरी है
अपनी ही नस्ल के लिए
आदमी है
'नो-मैंस लैण्ड'
दो दिलों
दो समुदायों
दो राष्ट्रों
दो सभ्यताओं के बीच
बीचे में बैठा
एक को देखता
एक आँख से
दूसरे को दूसरी से
दोनों को
एक आँख से नहीं देखता कभी
पहले वह
दोनों का सुख छीतता है
फिर अपना लेता है
दोनो का दुख
फिर दोनों को बताता
अलत-अलग
कौन दुखी है किसी की वजह से
फिर वे दिल, समुदाय,राष्ट्र
और सभ्यताएं
निकल पड़ते हैं
दुख के अनंत रास्ते पर
एक दूसरे से
अपना सुख
छीनने के लिए
मचान पर होता है आदमी
नीचे खूँटे पर चारे की तरह भी
बंधा होता है आदमी
आदमी है शिकार
आदमी ही शिकारी ।
'''(कमलेश्वर का उपन्यास 'कितने पाकिस्तान'पढ़ने के बाद)'''
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=|संग्रह=धरती होने का सुख / केशव
}}
<poem>
कितने पाकिस्तान
उग रहे कहाँ_कहाँ
उनके बोझ तले
छ्लनी-छलनी धरती
करती चीत्कार
जानता है आदमी
फिर भी
मानता नहीं है
हर पाकिस्तान
एक की भूख़
एक की यातना
एक पाकिस्तान
भिंडरावाले का मानस पुत्र
एक लादेन का
और ये सब
मानस पुत्र उस सत्ता के
जिसके लिए
मनुष्य से बड़ी
अपनी भूख़
बड़ी नहीं,
अनंत!
मानस पुत्र हैं ये
उस धर्म के
जिसकी आड़ में
कर लेते हैं वे
अपने लिए
एक नये धर्म का ईजाद
मनुष्यता की जगह
ले लेती है फिर बर्बरता
बर्बरता की अँधी सुरंग
उतरते हैं भेड़िये
निरीह और निर्दोष प्राणियों को सूंघते
औरों के पश्चाताप में
अपनी मुक्ति ढूँढते
उनकी राख से भी
जन्म लेते
हर बार
कितने-कितने पाकिस्तान
धरती को कहाँ
इन बन्दूकभाषियों से त्राण
आदमी करता
अपने ही दिये हुए जीवन से
आदमी को बेदखल
आदमी खोदता
आदमी के लिए खाई
आदमी ही धकेलता
आदमी को उसमें
आदमी ही जलाता
फिर आदमी की
कब्र पर दीया
आदमी ही
आदमी का कब्रिस्तान
ईश्वर तो यों ही बदनाम।
'''2'''
आदमी एक आरी है
अपनी ही नस्ल के लिए
आदमी है
'नो-मैंस लैण्ड'
दो दिलों
दो समुदायों
दो राष्ट्रों
दो सभ्यताओं के बीच
बीचे में बैठा
एक को देखता
एक आँख से
दूसरे को दूसरी से
दोनों को
एक आँख से नहीं देखता कभी
पहले वह
दोनों का सुख छीतता है
फिर अपना लेता है
दोनो का दुख
फिर दोनों को बताता
अलत-अलग
कौन दुखी है किसी की वजह से
फिर वे दिल, समुदाय,राष्ट्र
और सभ्यताएं
निकल पड़ते हैं
दुख के अनंत रास्ते पर
एक दूसरे से
अपना सुख
छीनने के लिए
मचान पर होता है आदमी
नीचे खूँटे पर चारे की तरह भी
बंधा होता है आदमी
आदमी है शिकार
आदमी ही शिकारी ।
'''(कमलेश्वर का उपन्यास 'कितने पाकिस्तान'पढ़ने के बाद)'''
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