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Kavita Kosh से
अब तुझे भी बड़ा आश्चर्य होता है
और मुझे भी बड़ा आश्चर्य होता है
और शायद वक़्त को भी फिर वह ग़लती गवारा नहीं
अब सूरज रोज वक़्त पर डूब जाता है