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चाहतें जो उसके शरीर पर फैली थीं मंजरियों जैसे
जो अमलुय है वो बेशकीमत है कभी न भूलना
अमर बसंत के रक्त से लिया गया आह्लाद का सार
हमारी पृथ्वी के पहले की दुनियाओं से चट्टानें तोड़ कर आते हुए,
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