भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
अमर बसंत के रक्त से लिया गया आह्लाद का सार
हमारी पृथ्वी के पहले की दुनियाओं से चट्टानें तोड़ कर आते हुए,
कभी ना नकारना सुबह के सहज प्रकाश में इसके आनंद को कभी ना नकारनाना ही इसकी शाम की प्रेम की गंभीर मांग।मांग को।
यातायात को कभी आहिस्ता से ना घोंटने देना
शोर से और धुंध से इस जीवट का पनपना।