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Kavita Kosh से
असाधरण मौतें
और मृत्यु -दर से
हिसाब लगाते सोचता है
ग़नीमत है इन दिनों
मृत्यु की असंख्य संभावनाओं में
आश्चर्यजनक है
जीवित रहना
जीवित रहना
उफनती चढ़ी नदी में
तैरते रहना है