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कभी यूँ भी आ / बशीर बद्र

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कवि: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}
[[Category:गज़ल]]
[[Category:बशीर बद्र]]<poem>कभी यूं भी आ मेरी आंख में, कि मेरी नजर को खबर ना होमुझे एक रात नवाज दे, मगर उसके बाद सहर ना हो
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~वो बड़ा रहीमो करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करेतुझे भूलने की दुआ करूं तो मेरी दुआ में असर ना हो
कभी यूं भी आ मेरी आंख मेरे बाज़ुऔं मेंथकी थकी, कि मेरी नजर को खबर अभी महवे ख्वाब है चांदनीना हो<br>मुझे एक रात नवाज देउठे सितारों की पालकी, मगर उसके बाद सहर अभी आहटों का गुजर ना हो<br><br>
वो बड़ा रहीमो करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे<br>तुझे भूलने गज़ल है जैसे हिरन की दुआ करूं तो मेरी दुआ आंखों में असर पिछली रात की चांदनीना बुझे खराबे की रौशनी, कभी बेचिराग ये घर ना हो<br><br>
मेरे बाज़ुऔं में थकी थकीवो फ़िराक हो या विसाल हो, अभी महवे ख्वाब है चांदनी<br>तेरी याद महकेगी एक दिनना उठे सितारों की पालकीवो गुलाब बन के खिलेगा क्या, अभी आहटों का गुजर जो चिराग बन के जला ना हो<br><br>
ये गज़ल है जैसे हिरन की आंखों में पिछली रात की चांदनी<br>कभी धूप दे, कभी बदलियां, दिलोज़ान से दोनो कुबूल हैंमगर उस नगर में ना बुझे खराबे की रौशनीकैद कर, कभी बेचिराग ये घर जहां ज़िन्दगी का हवा ना हो<br><br>
वो फ़िराक हो या विसाल होकभी यूं मिलें कोई मसलेहत, तेरी याद महकेगी एक दिन<br>कोई खौफ़ दिल में जरा ना होवो गुलाब बन के खिलेगा क्यामुझे अपनी कोई खबर ना हो, जो चिराग बन के जला तुझे अपना कोई पता ना हो<br><br>
कभी धूप देवो हजार बागों का बाग हो, कभी बदलियां, दिलोज़ान तेरी बरकतो की बहार से दोनो कुबूल हैं<br>मगर उस नगर में जहां कोई शाख हरी ना कैद करहो, जहां ज़िन्दगी का हवा कोई फूल खिला ना हो<br><br>
कभी तेरे इख्तियार में क्या नहीं, मुझे इस तरह से नवाज देयूं मिलें कोई मसलेहतदुआयें मेरी कूबूल हों, कोई खौफ़ मेरे दिल में जरा ना हो<br>मुझे अपनी कोई खबर ना हो, तुझे अपना कोई पता दुआ ना हो<br><br>
वो हजार बागों का बाग होकभी हम भी इस के करीब थे, तेरी बरकतो की बहार दिलो जान से<br>बढ कर अज़ीज़ थेजहां कोई शाख हरी ना होमगर आज ऐसे मिला है वो, जहां कोई फूल खिला कभी पहले जैसे मिला ना हो<br><br>
तेरे इख्तियार कभी दिन की धूप में क्या नहींझूम कर, मुझे इस तरह से नवाज दे<br>कभी शब के फ़ूल को चूम करयूं दुआयें मेरी कूबूल होंही साथ साथ चले सदा, मेरे दिल में कोई दुआ कभी खत्म अपना सफ़र ना हो<br><br>
कभी हम भी इस के करीब थे, दिलो जान से बढ कर अज़ीज़ थे<br>मगर आज ऐसे मिला है वो, कभी पहले जैसे मिला ना हो<br><br> कभी दिन की धूप में झूम कर, कभी शब के फ़ूल को चूम कर<br>यूं ही साथ साथ चले सदा, कभी खत्म अपना सफ़र ना हो<br><br> मेरे पास मेरे हबीब आ, जरा और दिल के करीब आ<br>तुझे धडकनों में बसा लूं मैं, कि बिछडने का कभी डर ना हो.<br><br/poem>