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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}
[[Category:गज़ल]]
[[Category:बशीर बद्र]]<poem>कहीं चांद राहों में खो गया कहीं चांदनी भी भटक गईमैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~मेरी दास्ताँ का उरूज था तेरी नर्म पलकों की छाँव मेंमेरे साथ था तुझे जागना तेरी आँख कैसे झपक गई
कहीं चांद राहों में खो गया कहीं चांदनी कभी हम मिले तो भी भटक गई <br>क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासलेमैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई <br><br>
मेरी दास्ताँ का उरूज था तेरी नर्म पलकों की छाँव में <br>मेरे साथ था तुझे जागना तेरी आँख कैसे झपक गई <br><br> कभी हम मिले तो भी क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले <br>न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई <br><br> तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी क़ामयाब न हो सकीं <br>तेरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई <br><br/poem>