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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>कौन आया रास्ते आईनाख़ाने हो गएरात रौशन हो गई दिन भी सुहाने हो गए
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~क्यों हवेली के उजड़ने का मुझे अफ़सोस होसैकड़ों बेघर परिंदों के ठिकाने हो गए
कौन आया रास्ते आईनाख़ाने ये भी मुमकिन है के उसने मुझको पहचाना न हो गए <br>रात रौशन हो गई दिन भी सुहाने अब उसे देखे हुए कितने ज़माने हो गए <br><br>
क्यों हवेली जाओ उन कमरों के उजड़ने का मुझे अफ़सोस आईने उठाकर फेंक दोवे अगर ये कह रहें हो <br>सैकड़ों बेघर परिंदों के ठिकाने हम पुराने हो गए <br><br>
ये भी मुमकिन है के उसने मुझको पहचाना न हो <br>अब उसे देखे हुए कितने ज़माने हो गए <br><br> जाओ उन कमरों के आईने उठाकर फेंक दो <br>वे अगर ये कह रहें हो हम पुराने हो गए <br><br> मेरी पलकों पर ये आँसू प्यार की तौहीन है <br>उनकी आँखों से गिरे मोती के दाने हो गए <br><br/poem>