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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न देकि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ख़तावार समझेगी दुनिया तुझेअब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई न दे
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे <br>हँसो आज इतना कि इस शोर मेंकि अपने सिवा कुछ दिखाई सदा सिसकियों की सुनाई न दे <br><br>
ख़तावार समझेगी दुनिया तुझे <br>अभी तो बदन में लहू है बहुतअब इतनी भी ज़्यादा सफ़ाई कलम छीन ले रौशनाई न दे <br><br>
हँसो आज इतना कि इस शोर में <br>मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लोसदा सिसकियों की सुनाई ज़मीं आसमाँ कुछ दिखाई न दे <br><br>
अभी तो बदन में लहू है बहुत <br>ग़ुलामी को बरकत समझने लगेंकलम छीन ले रौशनाई असीरों को ऐसी रिहाई न दे <br><br>
मुझे अपनी चादर से यूँ ढाँप लो <br>ऐसी जन्नत नहीं चाहेज़मीं आसमाँ कुछ जहान से मदीना दिखाई न दे <br><br>
ग़ुलामी को बरकत समझने लगें <br>मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँअसीरों को ऐसी रिहाई क़लम छीन ले रौशनाई न दे <br><br>
मुझे ऐसी जन्नत नहीं चाहे <br>जहान से मदीना दिखाई न दे <br><br> मैं अश्कों से नाम-ए-मुहम्मद लिखूँ <br>क़लम छीन ले रौशनाई न दे <br><br> ख़ुदा ऐसे इरफ़ान का नाम है <br>रहे सामने और दिखाई न दे <br><br/poem>