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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं मेंमाँगा था जिसे हम ने दिन रात दुआओं में
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~तुम छत पर नहीं आये मैं घर से नहीं निकलाये चाँद बहुत लटका सावन कि घटाओं में
ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं इस शहर में <br>इक लड़की बिल्कुल है ग़ज़ल जैसीमाँगा था जिसे हम ने दिन रात दुआओं फूलों की बदन वाली ख़ुशबू सी अदाओं में <br><br>
तुम छत पर नहीं आये मैं घर से नहीं निकला <br>ये चाँद बहुत लटका सावन कि घटाओं में <br><br> इस शहर में इक लड़की बिल्कुल है ग़ज़ल जैसी <br>फूलों की बदन वाली ख़ुशबू सी अदाओं में <br><br> दुनिया की तरह वो भी हँसते हैं मुहब्बत पर <br>डूबे हुये रहते थे जो लोग वफ़ाओं में <br><br/poem>