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|रचनाकार=इक़बाल
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सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं उसकी ये गुलसिताँ हमारा
सारे ग़ुरबत में हों अगर हम रहता है दिल वतन मेंसमझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ से अच्छा हिन्दुस्ताँ हमारा<br>हम बुलबुलें हैं उसकी ये गुलसिताँ हमारा<br>
ग़ुरबत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में<br>पर्वत वो सब से ऊँचा हमसाया आसमाँ कासमझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ वो सन्तरी हमारा वो पासबाँ हमारा<br><br>
पर्वत वो सब गोदी में खेलती हैं जिस की हज़ारों नदियाँगुलशन है जिस के दम से ऊँचा हमसाया आसमाँ का<br>वो सन्तरी हमारा वो पासबाँ रश्क-ए-जिनाँ हमारा<br><br>
गोदी में खेलती हैं जिस की हज़ारों नदियाँ<br>गुलशन है जिस के दम से रश्कऐ आब-ए-जिनाँ रूद-ए-गंगा वो दिन है याद तुझ कोउतरा तेरे किनारे जब कारवाँ हमारा<br><br>
ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा वो दिन है याद तुझ को<br>मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखनाउतरा तेरे किनारे जब कारवाँ हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दुस्ताँ हमारा<br><br>
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना<br>यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गये जहाँ सेहिन्दी हैं हम वतन अब तक मगर है हिन्दुस्ताँ बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा<br><br>
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गये जहाँ से<br>कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारीअब तक मगर सदियों रहा है बाक़ी नामदुश्मन दौर--निशाँ ज़माँ हमारा<br><br>
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी<br>सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा<br><br> 'इक़बाल' कोई महरम अपना नहीं जहाँ में<br>मालूम क्या किसी को दर्द-ए-नेहाँ हमारा<br><br>
रश्क=प्रतिस्पर्धा; जिनाँ=स्वर्ग; महरम=रहस्य वेत्ता; नेहाँ=गुप्त
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