भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
<Poem>
कभी तो कुछ दे नहीं पायाआज नाराज होने से क्‍या देता,मेरे पास क्‍या है देने के लिएहोगाएक तुमने ही तो मुझे कविता लिखी लिखना सिखाया है, पढोगी
तुम कौन होयाद है न ! डाइन, चुड़ैल या प्रेतिनीचुपचाप मेरी कापी से कविता पढ रही थीबूढी मालिन अथवा कोई राक्षसीजब से तुम आयी हो तभी सेऔर तुम्‍हारे पढने के लिए ही लिख रहा था मैंकुछ हो गया चांद उगने पर कुईं खिले बिना रह सकती है मुझेकभी ?
सब कुछ बदल गया लेकिन बड़ा कुशल हैचांदवह सागर में भर देता है ज्‍वारउसे कुमुद की भला कैसी चिन्‍ता ?वह अपने में मस्‍त, पर कुमुद लाचारखिलने को विवश।
कौन सा जादू किया तुम्‍हें कैसे मालूम होगा किसारी मैं कविता की सारी चीजेंखातिर कितनी बार मरता हूंकुछ अलग अलग सी लगने लगींउस अलगाव और जीता हूं। और किसी वैराग्‍य-आसक्ति में तुम ही सामने आयीकिसी तनहाई की मनमोहक बातमेरे रक्‍तकण में भर गयीजल-जल कर राख हो जाता हूं।
यह कौन सा दान हैआज नाराज होने पर क्‍या होगाजिसकी चीज उसे लौटा देनाकभी तुमने ही तो कुछ दे न पायामुझे कविता एक लिखी हैजरा पढोगीलिखना सिखाया है।
'''उडि़या से अनुवाद - वनमाली दास'''</poem>
765
edits