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Kavita Kosh से
<br />मां की, बुआ की हथेली कहार
<br />रे हैया रे हैया
<br />रे डोला रे डोला
<br /><br />चावल के चलते सुहागन है सूप
<br />जाड़े की संगत में दुपहर की धूप
<br />सरसों की मालिश में खिला खिला रूप
<br />रे हैया रे हैया
<br />रे डोला रे डोला
<br /><br />छोटे-से घर में है बालकनी एक
<br />बेटी है ठुमरी उम्मीदों की टेक<br />चादर को देती है पांवों से फेंक
<br /><br />रे हैया रे हैया
<br />रे डोला रे डोला
<br /><br />उजाले का दिन अंधेरे की रात
<br />उनींदे में हंस हंस के करती है बात<br />फूल सी फुहारे सी नन्हीं सौगात
<br />रे हैया रे हैया
<br />रे डोला रे डोला