भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ तो कहो न / रंजना भाटिया

3 bytes removed, 13:48, 12 फ़रवरी 2009
बरस रही बदरी
यह रिमझिम
फ़िर फिर भी ..
इतने मौन से तुम
स्तब्ध हो ..
माटी की मूरत जैसे
पर कुछ उद्देलितउद्वेलित
और कुछ बैचेन से
जैसे किसी तलाश में गुम
पर न जाने
तुम अब भी
उलझे धागों -से
हो किसी
उधेड़बुन में गुमसुम...