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Kavita Kosh से
बरस रही बदरी
यह रिमझिम
इतने मौन से तुम
स्तब्ध हो ..
माटी की मूरत जैसे
पर कुछ उद्देलितउद्वेलित
और कुछ बैचेन से
जैसे किसी तलाश में गुम
पर न जाने
तुम अब भी
उलझे धागों -से
हो किसी
उधेड़बुन में गुमसुम...