भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]] [[Category:बशीर बद्र]]<poem>साथ चलते आ रहे हैं पास आ सकते नहींइक नदी के दो किनारों को मिला सकते नहीं
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~देने वाले ने दिया सब कुछ अजब अंदाज सेसामने दुनिया पड़ी है और उठा सकते नहीं
साथ चलते आ रहे इस की भी मजबूरियाँ हैं, मेरी भी मजबूरियाँ हैं पास आ सकते नहीं<br>इक नदी के दो किनारों को मिला रोज मिलते हैं मगर घर में बता सकते नहीं<br><br>
देने वाले ने दिया सब कुछ अजब अंदाज से<br>सामने दुनिया पड़ी आदमी क्या है और उठा गुजरते वक्त की तसवीर हैजाने वाले को सदा देकर बुला सकते नहीं<br><br>
इस की भी मजबूरियाँ हैं, मेरी भी मजबूरियाँ हैं<br>किस ने किस का नाम ईंट पे लिखा है खून सेरोज मिलते हैं मगर घर में बता इश्तिहारों से ये दीवारें छुपा सकते नहीं<br><br>
आदमी क्या है गुजरते वक्त उस की तसवीर यादों से महकने लगता है <br>सारा बदनजाने वाले प्यार की खुशबू को सदा देकर बुला सीने में छुपा सकते नहीं<br><br>
किस ने किस का नाम ईंट पे लिखा है खून राज जब सीने से<br>बाहर हो गया अपना कहाँइश्तिहारों से ये दीवारें छुपा रेत पे बिखरे हुए आँसू उठा सकते नहीं<br><br>
उस की यादों से महकने लगता है सारा बदन<br>प्यार की खुशबू को सीने शहर में छुपा रहते हुए हमको जमाना हो गयाकौन रहता है कहाँ कुछ भी बता सकते नहीं<br><br>
राज जब सीने से बाहर हो गया अपना कहाँ<br>रेत पे बिखरे हुए आँसू उठा सकते नहीं<br><br> शहर में रहते हुए हमको जमाना हो गया<br>कौन रहता है कहाँ कुछ भी बता सकते नहीं<br><br> पत्थरों के बर्तनों में आँसू को क्या रखें<br>फूल को लफ्जों के गमलों में खिला सकते नहीं<br><br/poem>