भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
1.
अब किस का जश्न मनाते हो उस देस का जो तक़्सीम हुआ
अब किस के गीत सुनाते हो उस तन-मन का जो दो-नीम हुआ
3.उस ख़्वाब परचम का जो रेज़ा रेज़ा उन आँखों जिस की तक़दीर हुआ <br>हुर्मत बाज़ारों में नीलाम हुईउस नाम मिट्टी का जो टुकड़ा टुकड़ा गलियों में बे-तौक़ीर हुआ <br><br>जिस की हुर्मत मन्सूब उदू के नाम हुई
4.उस परचम जंग का जिस की हुर्मत बाज़ारों में नीलाम हुई <br>जो तुम हार चुके उस रस्म का जो जारी भी नहींउस मिट्टी ज़ख़्म का जो सीने पे न था उस जान का जिस की हुर्मत मन्सूब उदू के नाम हुई <br><br>जो वारी भी नहीं
5.उस जंग ख़ून का जो तुम हार चुके उस रस्म का जो जारी भी नहीं <br>बदक़िस्मत था राहों में बहाया तन में रहा उस ज़ख़्म फूल का जो सीने पे न बेक़ीमत था उस जान का जो वारी भी नहीं <br><br>आँगन में खिला या बन में रहा
6.उस ख़ून मश्रिक़ का जो बदक़िस्मत था राहों में बहाया तन में रहा <br>जिस को तुम ने नेज़े की अनी मर्हम समझा उस फूल मग़रिब का जो बेक़ीमत था आँगन में खिला या बन में रहा <br><br>जिस को तुम ने जितना भी लूटा कम समझा
11.या उन भूके नन्गे ढाँचों झूठे इक़रारों का जो रक़्स सर-ए-बाज़ार करें <br>आज तलक ऐफ़ा न हुए या उन ज़ालिम क़ज़्ज़ाक़ों बेबस लाचारों का जो भेस बदल कर वार करें <br><br>और भी दुख का निशाना हुए