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|रचनाकार=प्रभा दीक्षित
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[[Category:ग़ज़ल]]
<Poem>
तू कारवाँ के साथ में सबको मिला के चल
इक रोशनी का फूल दिलों में खिला के चल।

ये रात तेरे सर पर भी मंडराएगी ज़रूर
जुगनू की तरह जलते हुए झिलमिला के चल।

कुछ मुश्किलें पहाड-सी आएंगी राह में
दरियाँ की तरह हँसते हुए खिलखिला के चल।

चलने के लिए शर्त है मंज़िल की राह में
सारे जहाँ के बोझ को सर पे उठा के चल।

हर दर्द से गुज़रा है मेरे इश्क का ज़मीर
फटते हुए दामन को ज़रा सिल सिला के चल।

शायद ग़ज़ल में तेरी 'प्रभा' वो असर नहीं
बस्ती की बेहतरी में ख़ुद का घर जला के चल।
</poem>