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{{KKRachna
|रचनाकार=अशोक वाजपेयी
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[[Category:लम्बी कविता]]
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|आगे=अपनी आसन्नप्रसवा माँ के लिए / जन्मकथा / अशोक वाजपेयी
|सारणी=अपनी आसन्नप्रसवा माँ के लिए / अशोक वाजपेयी
}}
<poem>
काँच के आसमानी टुकड़े
और उन पर बिछलती सूर्य की करुणा
तुम उन सबको सहेज लेती हो
क्योंकि तुम्हारी अपनी खिड़की के
आठों काँच सुरक्षित हैं
और सूर्य की करूणा
तुम्हारे मुँडेरों भी
रोज बरस जाती है।
</poem>
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<poem>
काँच के आसमानी टुकड़े
और उन पर बिछलती सूर्य की करुणा
तुम उन सबको सहेज लेती हो
क्योंकि तुम्हारी अपनी खिड़की के
आठों काँच सुरक्षित हैं
और सूर्य की करूणा
तुम्हारे मुँडेरों भी
रोज बरस जाती है।
</poem>