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[[Category:लम्बी कविता]]
{{KKPageNavigation
|पीछे=अपनी आसन्नप्रसवा माँ के लिए / काँच के टुकड़े जीवित जल / अशोक वाजपेयी|आगे=अपनी आसन्नप्रसवा माँ के लिए / जन्मकथा / अशोक वाजपेयी
|सारणी=अपनी आसन्नप्रसवा माँ के लिए / अशोक वाजपेयी
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तुम ऋतुओं को पसंद करती होऔर आकाश तुम्हारी आँखों मेंनई आँखों के छोटे-छोटे दृश्य हैं,किसीतुम्हारे कंधों पर नए कंधों काहल्का-न-किसी की प्रतीक्षा करती हो सा दबाव है तुम्हारी बाँहें ऋतुओं तुम्हारे होंठों पर नई बोली की तरह युवा पहली चुप्पी हैऔर तुम्हारी अंगुलियों के पास कुछ नए स्पर्श हैंतुम्हारे कितने जीवित जलमाँ, मेरी माँ,राहें घेरते ही जा रहे हैं।औऱ तुम हो कि फिर खड़ी कितनी बार स्वयं से ही उग जाती होअलसाईऔर माँ, धूप-तपा मुख लिएमेरी जन्मकथा कितनी ताज़ीएक नए झरने का कलरव सुनतीं– एक घाटी और अभी-अभी की पूरी हरी गरिमा के साथहै(1960)
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