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|रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह
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<poem>
आज न्यूयार्क के स्काईस्क्रेपरों पर
शांति से 'डवों' और उसके राजहंसों ने
एक मीठे उजले सुख का हल्का-सा अंधेरा
::और शोर पैदा कर दिया है।
और अब वो अर्जेन्टीना की सिम्त अतलांतिक को पार कर
::रहे हैं
पाल राब्सन ने नई दिल्ली से नए अमरीका की
एक विशाल सिम्फ़नी ब्राडकास्ट की है
औऱ उदयशंकर ने दक्षिणी अफ़्रीका में नई अजंता को
स्टेज पर उतारा है
यह महान नृत्य वह महान स्वर कला और संगीत
मेरा है यानी हर अदना से अदना इंसान का
बिल्कुल अपना निजी।
युद्ध के नक़्शों की कैंची से काटकर कोरियाई बच्चों ने
झिलमिली फूलपत्तों की रौशन फ़ानूसें बना ली हैं
और हथियारों का स्टील और लोहा हज़ारों
देशों को एक-दूसरे से मिलानेवाली रेलों के जाल में बिछ
::गया है
और ये बच्चे उन पर दौड़ती हुई रेलों के डिब्बों की
::खिड़कियों से
हमारी ओर झाँक रहे हैं
यह फ़ौलाद और लोहा खिलौनों मिठाइयों और किताबों
::से लदे स्टीमरों के रूप में
नदियों की सार्थक सजावट बन गया है
या विशाल ट्रैक्टर-कंबाइन और फ़ैक्टरी-मशीनों के
हृदय में
नवीन छंद और लय का प्रयोग कह रहा है।
</poem>
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