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{{KKRachna
|रचनाकार =रघुवीर सहाय
}}
<poem>
घोड़ा
बिना सवार के
गली में
दौड़ता जाता है
मुड़ कर देखता है मुझे।
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|रचनाकार =रघुवीर सहाय
}}
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घोड़ा
बिना सवार के
गली में
दौड़ता जाता है
मुड़ कर देखता है मुझे।
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