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{{KKRachna
|रचनाकार=निर्मला पुतुल
|संग्रह=
}}

<Poem>
तुम मरे नही हो ललित मेहता
मरा नहीं है तुम्हारा जमीर
तुम्हारी ईमानदारी की पुकार जनता के बीच
गूँजती रहेगी हमेशा सदियों तक।
तुम्हारी कब्र की दरारों से
आवाज़ें आती रहेंगी और हमें बुलाती रहेंगी
और लहू के कतरे जो ज़मीन पर गिरे
उनसे प्रस्फुटित होंगे हज़ारों-हज़ार ललित मेहता
इससे पहले भी इस धरती पर कई योद्धाओं ने
देश की ख़ातिर कुरबानी दी,
उसी के लहू के कतरों से
तुम जैसे संघर्षरत योद्धा अंकुरित हुए
और आगे भी अंकुरित होते रहेंगे।
तुम्हारा लहू जहाँ गिरे वहाँ से पेड़ भी जनमेंगे तो
तुम्हारी शक्लों में दिखेंगे और
चीखेंगे व्यवस्था के विरुद्ध,
तुम्हारी हत्या साबित करती है कि
सच बोलने वाले ऎसे ही मार दिए जाते हैं
उनको जीतने से पहले हरा दिया जाता है
मार दिया जाता है ज़िन्द रहने से पहले
पर इतिहास गवाह ऎसे लोग मरते नहीं कभी
ज़िन्दा रहते हैं मरकर भी।
ठीक वैसे ही तुम भी रहोगे ज़िन्दा
यहाँ की आबोहवा में
एक-एक मनुष्य की स्मृतियों में और
हमेशा-हमेशा के लिए ज़िन्दा रहोगे
इतिहास के पन्नों में...।
</poem>