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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ त्यागी |संग्रह= }} <poem> धीरे-धीरे सांझ ...
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{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ त्यागी
|संग्रह=
}}
<poem>
धीरे-धीरे सांझ हो गई
अब बेला के फूल हिल गए
नभ में जमा भाव वह नए,
जगभर को मृदु स्वप्न दे गई!
ग्राम डगर पर खिसका अंचल
स्वर्ण विहग ले सोता पीपल
उठ जल से वह रेखा चंचल
अभी-अभी नभ में खो गई!
उधर सो गया धीरे, सविता
नभ में फैला कोमल कविता
जो बिखरे बादल की संध्या
नीरव पग धर मुझे दे गई!
</poem>
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|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ त्यागी
|संग्रह=
}}
<poem>
धीरे-धीरे सांझ हो गई
अब बेला के फूल हिल गए
नभ में जमा भाव वह नए,
जगभर को मृदु स्वप्न दे गई!
ग्राम डगर पर खिसका अंचल
स्वर्ण विहग ले सोता पीपल
उठ जल से वह रेखा चंचल
अभी-अभी नभ में खो गई!
उधर सो गया धीरे, सविता
नभ में फैला कोमल कविता
जो बिखरे बादल की संध्या
नीरव पग धर मुझे दे गई!
</poem>