भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
<poem>
ऐसा भी हो सकता हैहोना तो यह चाहिएअस्पताल में भीड़ न होऊंघ रहा हो पर्ची बनाने वालाडॉक्टर मक्खियां मारता मिलेसड़कें साफ होंएकदम खुश हो जाए तुम्हें देखसभी चलें बाईं ओरऔर तुम्हें कोई बीमारी थूके नहीं पेशाब हो।करे।
ऐसा भी हो सकता है होना तो यह चाहिएसस्ती दुकान पर खाली बैठा हो कर्मचारीमन साफ होंलाईन न हो कैरोसीन के लिएसभी नेक काम करेंबिजली बिल देने के लिएआवाज़ लगाये बाबूऔर तुम्हारी जेब खाली हो।हेरा-फेरी से डरें
ऐसा भी हो सकता हैहोना तो यह चाहिएकोई भी हकूमत हो मंत्री के पासकरें सरकारी सेवकचुपचाप जाने दे संतरीया सेवा नाम हटा देंहाकिम तुम्हें आवाज़ दे बुलाएबिठाए चाय पिलाएऔर तुम्हें कोई काम न हो।बनें सामने-सामने।
ऐसा भी हो सकता हैहोना तो यह चाहिएतुम प्रातः नगर द्वार पहले आदमी मिलोकि चोर लुटेरों को सजा मिलेतुम्हें बिठा दिया जाए सिंहासन फांसी परलटकाए जाएं हत्यारेउन्हें न बनाया जाए सांसद या बिना चुनाव लड़ेतुम्हें बना दिया जाये मंत्री।मन्त्री।
फिर तुम अपने गांव लौटोहोना तो यह चाहिएराजा कि नेता तूफान बाढ़ या मंत्री बन करसूखेजाना चाहो उसी गली में जहां खेलेउस खेत में जहां मक्की चुराईउस घराट में जहां स्कूल से छिपेसोना चाहो उन खिंद गूदड़ों मेंजहां सपने बुने पाओ वहां महल अट्टालिकापत्नी की जगह रानीबच्चों की जगह राजमुमारनौकर-चाकर, दास-दासियांकोई बचपन का साथी पर ही मिलेगांव का कोई बूढ़ा न दिखेकोई न तुम्हें जाने न पहचानेतुम डर जाओ जैसेमंजर देख डरे सुदामा।जाएं गाँव।
जाने ही होना तो यह चहिएकि सही जगह पर गलत आदमी दें अंगरक्षक तुम्हेंबैठेंउस घर में जहां मिट्टी से सनेऔरउस गलत जगह जहां माँ से बिछुड़े।पर सही आदमी।
रहो तुम आरामघर होना तो यह चाहिएकि अखबारों में बेआरामसही खबर जाएसच को सच लिखा जाएझूठ को झूठ। होना तो यह चहिएकि सब हाथों को काम मिलेथके हारों को आराम मिले। होना तो यह चाहिएअध्यापक कक्षा में पढ़ाएंट्यूशन न करेंडॉक्टर न खोलें प्राइवेट नर्सिंग होम। होना तो यह चाहिएनेता न बनें राजासेवा करें गरीबों कीलोगों की सुनें। सभी कहते हैंहोना तो यह चाहिएहोना तो वह चाहिएकरते नहीं। होना तो बहुत कुछ चाहिए अनहोनाहोता नहीं जो होना चाहिएइसलिये होना तो वही चाहिएऐसा भी हो सकता जो होना चाहिए।
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits