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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार= मासूम शायर}}[[Category:गज़ल]]<poem>वो शख्स अब मेरा पुराना मकान छोडेछोड़ेमेरे दिल से निकले मेरी ये जान छोडे  दुश्मनो को मौका तब ही कहीं मिलेगा मेरी ये जान पहले मेरा मेहरबान छोडेछोड़े
दुश्मनों को मौका तब ही कहीं मिलेगा
मेरी ये जान पहले मेरा मेहरबान छोड़े
मेरी हर एक शह पर क़ब्ज़ा सा किया है
मेरी ज़मीन छोड़े न वो आसमान छोड़े
मेरी ज़मीन छोडे ना वो आसमान छोडे  ख़ौफ़ भी दिया मुझे ज़िंदगी भी बक्शीबख़्शीसब तीर आजू बाजू मेरे तान तान छोडेछोड़े
वो प्यार अब नही है कैसे बताऊं इसको
 आज तक भी दिल ना वो दास्तान छोडेछोड़े
झूठी सी चार बातें कहने की आरज़ू है
 मेरी रूह से कहो तुम मेरी ज़ुबान छोडेछोड़े
जीते जी ये चाहा हां उसकी सुन सकूँ मैं
जो भी मुझे जला दे मेरे ये कान छोड़े
जो भी मुझे जला दे मेरे ये कान छोडे  छोटी सी जान दे दी की कि वो सुकूं पाए उसके मन को कैसे मन परेशान छोडेछोड़े
दुनिया जहां तू जिस शख्स के लिए है
तेरे लिए भी कैसे दुनिया जहान छोड़े
तेरे लिए भी कैसे दुनिया जहान छोडे  दिल में है तेरी यादें आँखों में ख्वाब तेरे मासूम जा रहा है तो कहाँ समान छोडेछोड़े</poem>
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