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कभी यूँ भी आ / बशीर बद्र

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कभी धूप दे, कभी बदलियां, दिलोज़ान से दोनो कुबूल हैं<br>
मगर उस नगर में ना कैद कर, जहां ज़िन्दगी का हवा ना हो<br><br>
 
कभी यूं मिलें कोई मसलेहत, कोई खौफ़ दिल में जरा ना हो<br>
मुझे अपनी कोई खबर ना हो, तुझे अपना कोई पता ना हो<br><br>
 
वो हजार बागों का बाग हो, तेरी बरकतो की बहार से<br>
जहां कोई शाख हरी ना हो, जहां कोई फूल खिला ना हो<br><br>
 
तेरे इख्तियार में क्या नहीं, मुझे इस तरह से नवाज दे<br>
यूं दुआयें मेरी कूबूल हों, मेरे दिल में कोई दुआ ना हो<br><br>
 
कभी हम भी इस के करीब थे, दिलो जान से बढ कर अज़ीज़ थे<br>
मगर आज ऐसे मिला है वो, कभी पहले जैसे मिला ना हो<br><br>
कभी दिन की धूप में झूम कर, कभी शब के फ़ूल को चूम कर<br>
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