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लहू न हो तो क़लम / वसीम बरेलवी

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[[Category:गज़ल]]
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लहू न हो तो क़लम तरजुमाँ नहीं होता
हमारे दौर में आँसू ज़ुबाँ नहीं होता
लहू न हो तो क़लम तरजुमाँ नहीं होता <br>जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटायेगा हमारे दौर में आँसू ज़ुबाँ किसी चराग़ का अपना मकाँ नहीं होता <br><br>
जहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटायेगा <br>ये किस मक़ाम पे लाई है मेरी तनहाई किसी चराग़ का अपना मकाँ के मुझ से आज कोई बदगुमाँ नहीं होता<br><br>
मैं उस को भूल गया हूँ ये किस मक़ाम पे लाई है मेरी तनहाई <br>कौन मानेगा किसी चराग़ के मुझ से आज कोई बदगुमाँ बस में धुआँ नहीं होता <br><br>
मैं उस को भूल गया हूँ ये कौन मानेगा <br>किसी चराग़ के बस में धुआँ नहीं होता <br><br> 'वसीम' सदियों की आँखों से देखिये मुझ को <br>वो लफ़्ज़ हूँ जो कभी दास्ताँ नहीं होता <br><br/poem>
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