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{{KKRachna
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-2
}}
<poem>
....और तब
याज्ञवल्क्य के वन की ओर बढ़े
कदमों को रोक कर
मैत्रेयी ने कहा -
'ज्ञान का अमरत्व दें मुझे'
ॠषि ठहर गये
मैत्रेयी आज भी रोको ॠषि को
प्रकृति से पूछो
इतिहास से और समय से मांगो
ज्ञान का अमरत्व
मैत्रेयी
फिर ठुकरा दो
ज्ञान के एवज में
संसार भर की
धन-संपदा !
</poem>
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|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-2
}}
<poem>
....और तब
याज्ञवल्क्य के वन की ओर बढ़े
कदमों को रोक कर
मैत्रेयी ने कहा -
'ज्ञान का अमरत्व दें मुझे'
ॠषि ठहर गये
मैत्रेयी आज भी रोको ॠषि को
प्रकृति से पूछो
इतिहास से और समय से मांगो
ज्ञान का अमरत्व
मैत्रेयी
फिर ठुकरा दो
ज्ञान के एवज में
संसार भर की
धन-संपदा !
</poem>