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{{KKRachna
|रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा
}}
<poem>
जब भी मेरा मन
घबराता है
मस्तिष्क --
तेरी यादों में
डूब जाता है.
रात
आँखों में
कटने लगती है--
तेरे एहसास से
चैन आता है.
उलझनों से घिरे
मन औ'
बेचैन मस्तिष्क को--
एक नया साहस
बंध जाता है.
सोचों में करीब
पा कर तुझे
ग़म से छुटकारा पा--
वेदना को नया
मार्ग मिल जाता है.
</poem>
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|रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा
}}
<poem>
जब भी मेरा मन
घबराता है
मस्तिष्क --
तेरी यादों में
डूब जाता है.
रात
आँखों में
कटने लगती है--
तेरे एहसास से
चैन आता है.
उलझनों से घिरे
मन औ'
बेचैन मस्तिष्क को--
एक नया साहस
बंध जाता है.
सोचों में करीब
पा कर तुझे
ग़म से छुटकारा पा--
वेदना को नया
मार्ग मिल जाता है.
</poem>