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{{KKRachna
|रचनाकार=उदयप्रताप सिंह
}}
<poem>
सारी धरा राम राम जन्म से हुई है धन्य
निर्विवाद सत्य को विवाद से निकालिये ।
रोम-रोम में बसे हुए हैं विश्वव्यापी राम
राम का महत्व एक वृत्त में न ढालिये
वसुधा कुटुंब के समान देखते रहे जो
ये घृणा के सर्प आस्तीन में न पालिये ।
राम-जन्मभूमि को तो राम ही सँभाल लेंगे
हो सके तो आप मातृभूमि को सँभालिये ।
</poem>
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|रचनाकार=उदयप्रताप सिंह
}}
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सारी धरा राम राम जन्म से हुई है धन्य
निर्विवाद सत्य को विवाद से निकालिये ।
रोम-रोम में बसे हुए हैं विश्वव्यापी राम
राम का महत्व एक वृत्त में न ढालिये
वसुधा कुटुंब के समान देखते रहे जो
ये घृणा के सर्प आस्तीन में न पालिये ।
राम-जन्मभूमि को तो राम ही सँभाल लेंगे
हो सके तो आप मातृभूमि को सँभालिये ।
</poem>