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{{KKRachna
|रचनाकार=धीरज आमेटा ’धीर’
}}
<poem>
दिल जुनूँ-पेशा है, दिल शौक़ से होता है फ़िगार,
लाख समझाता हुँ, तूफ़ान में कश्ती न उतार!
हमने देखा था जिन आँखों में फ़क़त प्यार ही प्यार,
क्यों मुक़द्दर ने उन्हें बक्श दिये अश्क हज़ार!
जाने क्यों आज तेरा रुख है उदासी का दयार,
"ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र ओ क़रार!" -- (बहादुर शाह ज़फ़र)
बात होँठों से जो निकली तो उलझती ही गयी,
मैने सोचा था निकल जायेगा सीने से गुबार!
ज़िन्दगी! तेरी इबादत में कटी उम्र तमाम,
मैने हर साँस में, साँसों का चुकाया है उधार!
अह ले दुनिया तो वो मांगे है जो पाना है कठिन!
फूल की अहमियत को और बढ़ा देता है खार!
तल्ख अन्दाज़ में सच बात ज़बाँ से न निकाल,
'धीर' बेहतर है कि सच्चाई को गज़लों में उतार!
</poem>
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|रचनाकार=धीरज आमेटा ’धीर’
}}
<poem>
दिल जुनूँ-पेशा है, दिल शौक़ से होता है फ़िगार,
लाख समझाता हुँ, तूफ़ान में कश्ती न उतार!
हमने देखा था जिन आँखों में फ़क़त प्यार ही प्यार,
क्यों मुक़द्दर ने उन्हें बक्श दिये अश्क हज़ार!
जाने क्यों आज तेरा रुख है उदासी का दयार,
"ले गया छीन के कौन आज तेरा सब्र ओ क़रार!" -- (बहादुर शाह ज़फ़र)
बात होँठों से जो निकली तो उलझती ही गयी,
मैने सोचा था निकल जायेगा सीने से गुबार!
ज़िन्दगी! तेरी इबादत में कटी उम्र तमाम,
मैने हर साँस में, साँसों का चुकाया है उधार!
अह ले दुनिया तो वो मांगे है जो पाना है कठिन!
फूल की अहमियत को और बढ़ा देता है खार!
तल्ख अन्दाज़ में सच बात ज़बाँ से न निकाल,
'धीर' बेहतर है कि सच्चाई को गज़लों में उतार!
</poem>