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{{KKBhaktiKavya|रचनाकार=KKDharmikRachna}}{{KKCatArti}}<poem> आरती श्री वृषभानुसुता की।<BR>मन्जु मूर्ति मोहन ममता की। आरती ..<BR>.त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि,<BR>विमल विवेक विराग विकासिनि,<BR>पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि,<BR>सुन्दरतम छवि सुन्दतरा की॥ आरती ..<BR>.मुनि मनमोहन मोहन मोहनि,<BR>मधुर मनोहर मूरति सोहनि,<BR>अविरल प्रेम अमित रस दोहनि,<BR>प्रिय अति सदा सखी ललिता की॥ आरती ..<BR>.संतत सेव्य संत मुनिजन की,<BR>आकर अमित दिव्यगुन गन की,<BR>आकर्षिणी कृष्ण तन मन की,<BR>अति अमूल्य सम्पति समता की॥ आरती ..<BR>.कृष्णात्मिका, कृष्ण सहचारिणि,<BR>चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि,<BR>जगजननि जग दु:ख निवारिणि,<BR>आदि अनादि शक्ति विभुता की॥ आरती ...</poem>
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