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Kavita Kosh से
::: कि मेरे साथ हो लो
::: और बहती गंगा में हाथ धो लो
हमने कहा : गटर को गंगा कहते हो?
::: ये तो वक्त की बात है
::: जो भारत वर्ष में रह रहे हो
वो बोला : भारत और भ्रष्टाचार की राशि एक है
::: कश्मीर से कन्याकुमारी तक
::: हमारी ही देख-रेख है
::: राजनीति हमारी प्रेमिका
::: और पर्टी औलाद है
::: आज़ादी हमारी आया है
::: और नेता हमारा दामाद है
हमने कहा : ठीक कहते हो भ्रष्टाचार जी!
::: दामाद चुनाव में खड़ा हो जाता है
::: और जीतने के बाद
::: उसकी अँगुली छोटी
::: और नाखुन बड़ा हो जाता है
::: मगर याद रखना
::: दामादों का भविष्य काला है
::: बस, तूफ़ान आमे ही वाला है
वो बोला : तूफ़ान आए चाहे आंधी
::: अपना तो एक ही नारा है
::: भरो तिज़ोरी चंदी की
::: जै बोलो महात्मा गांधी की
हमने कहा : अपने नापाक मुँह से
::: गांधी का नाम तो मत लो
वो बोला : इस ज़माले में
::: गांधी का नाम
::: मेरे सिवाय कैन लेता है
::: गांधी के सिद्धांतों पर चलने वालों को
::: जीने कैन देता है
::: मत भूलो
::: कि भ्रष्टाचार
::: इस ज़माने की लाचारी है
::: हमें मालूम है
::: कि आप कवि हैं
::: और आपने कविता कि कौन सी लाइन
::: कहाँ से मारी है।