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{{KKRachna
|रचनाकार=पॉल एल्युआर
}}
<poem>
'''बिल्ली'''
कि एक भी उँगली नीचे न रहे
बिल्ली बहुत मोटा जीव है
गरदन उसकी सिर से जुड़ी है
घूनती है उसी गोलाई में
और सहलाने का देती है जवाब
रात को आदमी को दीखती हैं उसकी आँखें
जिनकी पीलाई ही उनका वरदान है
इतनी मोटी हैं आँखें कि छिपती नहीं छिपाए
इतनी भारी कि सपने की हवा हो जाए ग़ायब
जब बिल्ली नाचती है
अपने शिकार को अलग रखती है
और जब सोचती है वह
आँख की दीवार तक पहुँचती है
</poem>
(मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी)
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|रचनाकार=पॉल एल्युआर
}}
<poem>
'''बिल्ली'''
कि एक भी उँगली नीचे न रहे
बिल्ली बहुत मोटा जीव है
गरदन उसकी सिर से जुड़ी है
घूनती है उसी गोलाई में
और सहलाने का देती है जवाब
रात को आदमी को दीखती हैं उसकी आँखें
जिनकी पीलाई ही उनका वरदान है
इतनी मोटी हैं आँखें कि छिपती नहीं छिपाए
इतनी भारी कि सपने की हवा हो जाए ग़ायब
जब बिल्ली नाचती है
अपने शिकार को अलग रखती है
और जब सोचती है वह
आँख की दीवार तक पहुँचती है
</poem>
(मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी)