भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रोबेर साबातिए }} <poem> पेड़ गुजरता है सामने से आदमी...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रोबेर साबातिए
}}
<poem>
पेड़ गुजरता है सामने से
आदमी देखता है उसे
और महसूस करता है उसके हरे बालों को
पत्तियों से लदी बाँह हिलाता है पेड़
दीवार की ओर फिसलता है एक कोमल हाथ
शरद बटोरने वाला हाथ
और उपजाता है फल
समुद्र को सहलाने के लिए
बच्चा जब आता है
बोलता है जंगल
नहीं जानता बच्चा कि बोल सकते हैं पेड़ भी
रेत के घरौंदों की याद सुनी हों जैसे उसने
बूढ़ी छाल भी पहचानती है उसे
पर इस पीले चेहरे से डरती है
सब हटते जाते हैं
और कुछ पत्तियाँ चुराता है वह
समूचा पेड़ हिलता है
उसे विदा कहते हुए
एक नस के खातिर
वह रोता है सात जनम
एक सितारे के लिए खोता है अपनी आँखें
और बहा देता है अपनी जड़ें नदी में
गला सुखा देंगी आखिरी आहें
जब वहाँ चिड़ियाएँ नहीं बैठेंगी फिर कभी
कोई चीरता है वसंत को लगातार
छोटा पेड़ फैलाता है अपनी नंगी बाहें
और कहता है कुछ शब्द
जिन्हे चबा जाती है हवा।
</poem>
'''मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी
{{KKRachna
|रचनाकार=रोबेर साबातिए
}}
<poem>
पेड़ गुजरता है सामने से
आदमी देखता है उसे
और महसूस करता है उसके हरे बालों को
पत्तियों से लदी बाँह हिलाता है पेड़
दीवार की ओर फिसलता है एक कोमल हाथ
शरद बटोरने वाला हाथ
और उपजाता है फल
समुद्र को सहलाने के लिए
बच्चा जब आता है
बोलता है जंगल
नहीं जानता बच्चा कि बोल सकते हैं पेड़ भी
रेत के घरौंदों की याद सुनी हों जैसे उसने
बूढ़ी छाल भी पहचानती है उसे
पर इस पीले चेहरे से डरती है
सब हटते जाते हैं
और कुछ पत्तियाँ चुराता है वह
समूचा पेड़ हिलता है
उसे विदा कहते हुए
एक नस के खातिर
वह रोता है सात जनम
एक सितारे के लिए खोता है अपनी आँखें
और बहा देता है अपनी जड़ें नदी में
गला सुखा देंगी आखिरी आहें
जब वहाँ चिड़ियाएँ नहीं बैठेंगी फिर कभी
कोई चीरता है वसंत को लगातार
छोटा पेड़ फैलाता है अपनी नंगी बाहें
और कहता है कुछ शब्द
जिन्हे चबा जाती है हवा।
</poem>
'''मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी