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कविता / आरागों

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|रचनाकार=लुई आरागों
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<poem>
बिखेरने वाले
नयनों का चूर्ण नहीं कुछ और नींद की रेत के सिवा
सूरज की धार जैसे वह हो चली हो पुरानी
तू अपने दिल को मानता है वाद्ययंत्र
नाज़ुक देह अपराध की
मृत भार
क्या करना चाहिए मुझे इस भार का
भावनाओं का श्रृंगार
झूठ बोलता हूँ मैं और खाता हूँ
जीवन्त जीवन और निर्मल आकाश
कोई नहीं जानता कहाँ से आती है हवा
वाह क्या सौंन्दर्य
मेरा दिमाग नहीं
समय मुझे मदद करता है आड़े वक्त में


ल मूवमों पेरपेच्युएल(1920-1924)से
</poem>

'''मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी
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