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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रंजीत वर्मा }}<poem>एक ऐसे समय मेंमैंने तुम्हारा साथ दियाजब समय मेरा साथ नहीं दे रहा था वे हो सकते हैंउत्तेजक और अमीरलेकिन जिस तरह मैं भटका मिलने को तुमसे पूरी उम्रभटक कर दिखाएं वेएक पूरा दिन भी एक ऐसे समय मेंजब प्रेम करना मूर्खता माना जा रहा थाऔर अदालतें खिलाफ मेंफैसले सुना रही थींप्रेमिकाएंअपने वादों से मुकर रही थींऔर प्रेमी पंखे से झूल रहे थेमैंने प्रेम किया तुमसेतमाम खतरों के भीतर से गुजरते हुएमैंने तुम्हे दिल दियाजब तुम्हे खुद अपना दिल संभालना मुश्किल हो रहा था तुम्हारे सांवले रंग में गहराती शाम का झुटपुटा होता था हमेशाएक रहस्य गढ़ता हुआमैं एक पेड़ की तरह होता था जहांअंधेरे में खोता हुआ एक ऐसे समय में ज्ब आगे बढ़ने के करतबकौशल माने जा रहे थेबादलों की तरह भटकता रहा मैंमिलने को तुमसे पूरी उम्रभटककर दिखाएं वे मेरी तरहएक पूरा दिन भी।
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