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तेरी याद ! / शार्दुला नोगजा

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उफ़! तेरी याद की मरमरी उँगलियाँ
आ के काँधे पे लम्हें पिरोती रहें
जैसे सूने पहाड़ों पे गाये कोई
और नदियाँ चरण आ भिगोती रहें !

पगतली से उठे, पीठ की राह ले
एक सिहरन सी है याद अब बन गई
चाँदनी की किरण दौड़ आकाश में
सब सितारों को ले शाल एक बुन गई !

ताक पे जा रखा था उठा के उसे
तेरी ग़ज़लों को सीढ़ी बनाके हँसी
गीतों का ले सहारा दबे पाँव वो
उतरी है मुझसे नज़रें चुरा के अभी !

बन के छोटी सी बच्ची मचलने लगी
गोद में जा छुपी, हाथ है चूमती
चाहे डाटूँ उसे या दुलारूँ उसे
आगे-पीछे पकड़ पल्लू वो घूमती !

एक गमले में जा याद को रख दिया
घर गुलाबों की खुशबू से भर सा गया
जाने कब मैं बनी मीरा, तू श्याम बन
मेरे जीवन में छन्न-छन्न उतरता गया !
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