भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किशोर / व्योमेश शुक्ल

10 bytes added, 20:16, 10 अप्रैल 2009
दुनिया में लौटना होता है किशोर को भी
 
असफल लोगों को याद है या याद नहीं है
 
मुझसे किशोर ने कुछ कहा था या नहीं कहा था
 
विपत्ति है थियेटर घर फूँककर तमाशा देखना पड़ता है
 
दर्शक आते हैं या नहीं आते
 
नहीं आते हैं या नहीं आते
 
भारतेंदु के मंच पर आग लग गई है लोग बदहवास होकर अंग्रेजी में भाग रहे हैं
किशोर देखता हुआ यह सब अपने मुँह के चित्र में खैनी जमाता है ग़ायब हो जाता है
 
शाहख़र्च रहा शुरू से अब साँस ख़र्च करता है गुब्बारे फुलाता है
 
सुरीला था किशोर राग भर देता है गुब्बारों के खेल में बच्चे
यमन अहीर भैरव तिलक कामोद उड़ाते हैं अपने हिस्से के खेल में
 
बहुत ज्यादा समय में बहुत थोड़ा किशोर है
 
साँस लेने की आदत में बचा हुआ
गाता
<poem>
Anonymous user