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Kavita Kosh से
पेड़ बौने लिये, बोन्साई खेत सी
टूटी इक गिटार सी, क्लिष्टव्यवहार क्लिष्ट व्यवहार सी
नाम भी ना रहे याद, भूले प्यार सी
हमको ऐसे मिली कि हँसी आ गई
फिर गले से लगाया तो शर्मा गई
ज़िंदगी प्यार के झूठे ई-मेल सी
पुल पे आई विलम्बित थकी रेल सी !
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