भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मुझ से हंस के कहा इक बुरुंश फूल ने
अपनी चांदी की पायल मुझे दे गयी
मुझेसे मुझ से बातें करी जब नरम धूप ने ।
मैं लचकती चली, थकती, रुकती चली
Anonymous user