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Kavita Kosh से
१०. आप हिले और मोहे हिलाए वा का हिलना मोए मन भाए हिल हिल के वो हुआ निसंखा ऐ सखि साजन? ना सखि पंखा! ११. अर्ध निशा वह आया भौन सुंदरता बरने कवि कौन निरखत ही मन भयो अनंद ऐ सखि साजन? ना सखि चंद! १२. शोभा सदा बढ़ावन हारा आँखिन से छिन होत न न्यारा आठ पहर मेरो मनरंजन ऐ सखि साजन? ना सखि अंजन! १३. जीवन सब जग जासों कहै वा बिनु नेक न धीरज रहै हरै छिनक में हिय की पीर ऐ सखि साजन? ना सखि नीर! १४. बिन आये सबहीं सुख भूले आये ते अँग-अँग सब फूले सीरी भई लगावत छाती ऐ सखि साजन? ना सखि पाती! १५. सगरी रैन छतियां पर राख रूप रंग सब वा का चाख भोर भई जब दिया उतार ऐ सखि साजन? ना सखि हार! १६. पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो जब उतरयो तो पसीनो आयो सहम गई नहीं सकी पुकार ऐ सखि साजन? ना सखि बुखार! १७. सेज पड़ी मोरे आंखों आए डाल सेज मोहे मजा दिखाए किस से कहूं अब मजा में अपना ऐ सखि साजन? ना सखि सपना! १८. बखत बखत मोए वा की आस <br> रात दिना ऊ रहत मो पास <br> मेरे मन को सब करत है काम। <br>काम ऐ सखी सखि साजन? ना सखी, सखि राम! १९. सरब सलोना सब गुन नीका वा बिन सब जग लागे फीका वा के सर पर होवे कोन ऐ सखि ‘साजन’ना सखि! लोन(नमक) २०. सगरी रैन मिही संग जागा भोर भई तब बिछुड़न लागा उसके बिछुड़त फाटे हिया’ ए सखि ‘साजन’ ना, सखि! दिया(दीपक) 21.राह चलत मोरा अंचरा गहे।मेरी सुने न अपनी कहेना कुछ मोसे झगडा-टंटाऐ सखि साजन ना सखि कांटा! 22.बरसा-बरस वह देस में आवे, मुँह से मुँह लाग रस प्यावे।वा खातिर मैं खरचे दाम, ऐ सखि साजन न सखि! आम।। 23.नित मेरे घर आवत है, रात गए फिर जावत है।मानस फसत काऊ के फंदा, ऐ सखि साजन न सखि! चंदा।। 24.आठ प्रहर मेरे संग रहे, मीठी प्यारी बातें करे।श्याम बरन और राती नैंना, ऐ सखि साजन न सखि! मैंना।। 25.घर आवे मुख घेरे-फेरे, दें दुहाई मन को हरें,कभू करत है मीठे बैन, कभी करत है रुखे नैंन।ऐसा जग में कोऊ होता, ऐ सखि साजन न सखि! तोता।। <br><br/poem>