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21:27, 13 अप्रैल 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=उमाशंकर चौधरी}}
<poem>
जबकि इस बड़े शहर में
बड़े-बड़े घर हैं और
इन बड़े-बड़े घरों में हैं बड़ी-बड़ी खिड़कियाँ, तब
उसके हिस्से इस छोटे से घर में
छोटी खिड़की आई है।
छोटी खिड़की,
जिससे देखता है छोटा आसमान
चंद तारे और बादल का एक टुकड़ा।
वह औरत उस छोटी खिड़की से
देखती है गली में, उस सब्जी वाले को
देती है आवाज गली में खेलते अपने बच्चों को
और करती है इंतजार काम पर से
अपने पति के लौटने का।
छोटी खिड़की कभी बंद नहीं होती।
</poem>