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अठखेलियाँ करती हवा में मैंने अपने कपड़े उतारेकि नहा सकूँ कलकल बहती नदी पाप किया पर पाप मेंथा निस्सीम आनंदपर स्तब्ध रात ने बाँध लिया मुझे अपने मोहपाश समा गई गर्म और उत्तप्त बाँहों मेंमुझसे पाप हो गयापुलकित, बलशाली और ठगी-सी मैंअपने दिल का दर्द सुनाने लगी पानी को।आक्रामक बाँहों में।
ठंडा था पानी और थिरकती लहरों एकांत के साथ बह रहा थाहल्के से फुसफुसाया उस अँधेरे और लिपट गया मेरे बदन सेनीरव कोने मेंऔर जागने-कुलबुलाने लगीं मेरी चाहतेंमैंने उसकी रहस्यमयी आँखों में देखासीने में मेरा दिल ऐसे आवेग में धड़काउसकी आँखों की सुलगती चाहत नेमुझे अपनी गिरफ़्त में ले लिया।
शीशे जैसे चिकने हाथों सेएकांत के उस अँधेरे और नीरव कोने मेंजब मैं उससे सटकर बैठीधीरे-धीरे वह निगलने लगा अपने अंदरका सब कुछ बिखर कर बह चलाउसके होंठ मेरे होंठों में भरते रहे लालसामेरी देह और रूह दोनों मैं अपने मन केतमाम दुखों को ही।बिसराती चली गई।
तभी अचानक हवा का एक बगूला उठाऔर मेरे केशों मैंने उसके कान में झोंक गया धूल-मिट्टीप्यार से कहा –उसकी साँसों में सराबोर थीमेरी रूह के साथी, मैं तुम्हें चाहती हूँजंगली फूलों की पगला देने वाली भीनी ख़ुशबूमैं चाहती हूँ तुम्हारा जीवनदायी आलिंगनयह धीरे-धीरे भरती गई मैं तुम्हें ही चाहती हूँ मेरे मुँह के अंदर।प्रियऔर सराबोर हो रही हूँ तुम्हारे प्रेम में।
आनंद चाहत कौंधी उसकी आँखों में उन्मत्त हो उठी मैंनेमूँद लीं अपनी आँखेंछलक गई शराब उसके प्याले मेंऔर रगड़ने लगी मेरा बदन अपनाफिसलने लगा उसके ऊपरकोमल नई उगी जंगली घास परजैसी हरकतें करती है प्रेमिकाअपने प्रेमी से सटकरऔर बहते हुए पानी मेंधीरे-धीरे मैंने खो दिया अपना आपा भीअधीर, प्यास से उत्तप्त और चुंबनों से उभ-चुभपानी के काँपते होंठों नेगिरफ़्त में ले लीं मेरी टांगेंऔर हम समाते चले गए एक दूसरे में…देखते – देखतेतृप्ति और नशे से मदमत्तमेरी देह और नदी मखमली गद्दे की रूहदोनों ही जा पहुँचे – गुनाह के कटघरे में।भरपूर कोमलता लिए।
मैंने पाप किया पर पाप में था निस्सीम आनंद
उस देह के बारूद में लेटी हूँ
जो पड़ा है अब निस्तेज और शिथिल
मुझे यह पता ही नहीं चला हे ईश्वर !
कि मुझसे क्या हो गया
एकांत के उस अँधेरे और नीरव कोने में।
'''मीतरा सोफिया अहमद करीमी हक्काक के अंग्रेजी अनुवाद से हिन्दी में अनुवाद यादवेन्द्र'''
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