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कवि: [[माखनलाल चतुर्वेदी]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी]] |संग्रह= ~*~*~*~*~*~*~*~ }}<poem>
अंजलि के फूल गिरे जाते हैं
 
आये आवेश फिरे जाते हैं।
 
 
चरण-ध्वनि पास-दूर कहीं नहीं
 
साधें आराधनीय रही नहीं
 
उठने,उठ पड़ने की बात रही
 
साँसों से गीत बे-अनुपात रही
 
 
बागों में पंखनियाँ झूल रहीं
 
कुछ अपना, कुछ सपना भूल रहीं
 
फूल-फूल धूल लिये मुँह बाँधे
 
किसको अनुहार रही चुप साधे
 
 
दौड़ के विहार उठो अमित रंग
 
तू ही `श्रीरंग' कि मत कर विलम्ब
  बाँधीबँधी-सी पलकें मुँह खोल उठीं 
कितना रोका कि मौन बोल उठीं
 
आहों का रथ माना भारी है
 
चाहों में क्षुद्रता कुँआरी है
 
 
आओ तुम अभिनव उल्लास भरे
 
नेह भरे, ज्वार भरे, प्यास भरे
 
 
अंजलि के फूल गिरे जाते हैं
 
आये आवेश फिरे जाते हैं।।
</poem>
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