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कवि: [[माखनलाल चतुर्वेदी]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी]] ~*~*~*~*~*~*~*~ |संग्रह= }}<poem>
इस तरह ढक्कन लगाया रात ने
 
इस तरफ़ या उस तरफ़ कोई न झाँके।
 
 
बुझ गया सूर्य
 
बुझ गया चाँद, तस्र् ओट लिये
 
गगन भागता है तारों की मोट लिये!
 
 
आगे-पीछे,ऊपर-नीचे
 
अग-जग में तुम हुए अकेले
 
छोड़ चली पहचान, पुष्पझर
 
रहे गंधवाही अलबेले।
 
 
ये प्रकाश के मरण-चिन्ह तारे
 
इनमें कितना यौवन है?
 
गिरि-कंदर पर, उजड़े घर पर
 
घूम रहे नि:शंक मगन हैं।
 
घूम रही एकाकिनि वसुधा
 
जग पर एकाकी तम छाया
 
कलियाँ किन्तु निहाल हो उठीं
 
तू उनमें चुप-चुप भर आया
 
 
मुँह धो-धोकर दूब बुलाती
 
चरणों में छूना उकसाती
 
साँस मनोहर आती-जाती
 
मधु-संदेशे भर-भर लाती।
</poem>
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