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उपालम्भ / माखनलाल चतुर्वेदी

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कवि: [[माखनलाल चतुर्वेदी]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी]] |संग्रह= ~*~*~*~*~*~*~*~ }}<poem>
क्यों मुझे तुम खींच लाये?
 
 
एक गो-पद था, भला था,
 
कब किसी के काम का था?
 
क्षुद्ध तरलाई गरीबिन
 
अरे कहाँ उलीच लाये?
 
 
एक पौधा था, पहाड़ी
 
पत्थरों में खेलता था,
 
जिये कैसे, जब उखाड़ा
 
गो अमृत से सींच लाये!
 
 
एक पत्थर बेगढ़-सा
 
पड़ा था जग-ओट लेकर,
 
उसे और नगण्य दिखलाने,
 
नगर-रव बीच लाये?
 
एक वन्ध्या गाय थी
 
हो मस्त बन में घूमती थी,
 
उसे प्रिय! किस स्वाद से
 
सिंगार वध-गृह बीच लाये?
 
 
एक बनमानुष, बनों में,
 
कन्दरों में, जी रहा था;
 
उसे बलि करने कहाँ तुम,
 
ऐ उदार दधीच लाये?
 
 
जहाँ कोमलतर, मधुरतम
 
वस्तुएँ जी से सजायीं,
 
इस अमर सौन्दर्य में, क्यों
 
कर उठा यह कीच लाये?
 
 
चढ़ चुकी है, दूसरे ही
 
देवता पर, युगों पहले,
 
वही बलि निज-देव पर देने
 
दृगों को मींच लाये?
 
क्यों मुझे तुम खींच लाये?
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