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कवि: [[माखनलाल चतुर्वेदी]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी]] ~*~*~*~*~*~*~*~ |संग्रह= }}<poem>
उस प्रभात, तू बात न माने,
 
तोड़ कुन्द कलियाँ ले आई,
 
फिर उनकी पंखड़ियाँ तोड़ीं
 
पर न वहाँ तेरी छवि पाई,
 
 
कलियों का यम मुझ में धाया
 
तब साजन क्यों दौड़ न आया?
 
 
फिर पंखड़ियाँ ऊग उठीं वे
 
फूल उठी, मेरे वनमाली!
 
कैसे, कितने हार बनाती
 
फूल उठी जब डाली-डाली!
 
सूत्र, सहारा, ढूँढं न पाया
 
तू, साजन, क्यों दौड़ न आया?
 
 
दो-दो हाथ तुम्हारे मेरे
 
प्रथम `हार' के हार बनाकर,
 
मेरी `हारों' की वन माला
 
फूल उठी तुझको पहिनाकर,
 
पर तू था सपनों पर छाया
 
तू साजन, क्यों दौड़ न आया?
 
 
दौड़ी मैं, तू भाग न जाये,
 
डालूँ गलबहियों की माला
 
फूल उठी साँसों की धुन पर
 
मेरी `हार', कि तेरी `माला'!
 
तू छुप गया, किसी ने गाया-
 
रे साजन, क्यों दौड़ न आया!
 
 
जी की माल, सुगंध नेह की
 
सूख गई, उड़ गई, कि तब तू
 
दूलह बना; दौड़कर बोला
 
पहिना दो सूखी वनमाला।
मैं तो होश समेट न पाई
 
तेरी स्मृति में प्राण छुपाया,
युग बोला, तू अमर तस्र्ण है
 
मति ने स्मृति आँचल सरकाया,
 
 
जी में खोजा, तुझे न
 
तू साजन, क्यों दौड़ न आया?
</poem>
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