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कवि: [[माखनलाल चतुर्वेदी]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी]] ~*~*~*~*~*~*~*~ |संग्रह= }}<poem>
जीवन, यह मौलिक महमानी!
 
खट्टा, मीठा, कटुक, केसला
 
कितने रस, कैसी गुण-खानी
 
हर अनुभूति अतृप्ति-दान में
 
बन जाती है आँधी-पानी
 
 
कितना दे देते हो दानी
 
जीवन की बैठक में, कितने
 
भरे इरादे दायें-बायें
तानें स्र्कती रुकती नहीं भले ही 
मिन्नत करें कि सौहे खायें!
 
रागों पर चढ़ता है पानी।।
 
जीवन, यह मौलिक महमानी।।
 
 
ऊब उठें श्रम करते-करते
 
ऐसे प्रज्ञाहीन मिलेंगे
 
साँसों के लेते ऊबेंगे
 
ऐसे साहस-क्षीण मिलेगे
 
कैसी है यह पतित कहानी?
 
जीवन, यह मौलिक महमानी।।
 
ऐसे भी हैं, श्रम के राही
 
जिन पर जग-छवि मँडराती है
 
ऊबें यहाँ मिटा करती हैं
 
बलियाँ हैं, आती-जाती हैं।
 
अगम अछूती श्रम की रानी!
 
जीवन, यह मौलिक महमानी।।
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