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कवि: [[माखनलाल चतुर्वेदी]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी]] |संग्रह= ~*~*~*~*~*~*~*~ }}<poem>
नयी-नयी कोपलें, नयी कलियों से करती जोरा-जोरी
 
चुप बोलना, खोलना पंखुड़ि, गंध बह उठा चोरी-चोरी।
 
 
उस सुदूर झरने पर जाकर हरने के दल पानी पीते
 
निशि की प्रेम-कहानी पीते, शशि की नव-अगवानी पीते।
 
 
उस अलमस्त पवन के झोंके ठहर-ठहर कैसे लहाराते
 
मानो अपने पर लिख-लिखकर स्मृति की याद-दिहानी लाते।
 
 
बेलों से बेलें हिलमिलकर, झरना लिये बेखर उठी हैं
 
पंथी पंछी दल की टोली, विवश किसी को टेर उठी है।
 
 
किरन-किरन सोना बरसाकर किसको भानु बुलाने आया
 
अंधकार पर छाने आया, या प्रकाश पहुँचाने आया।
 
 
मेरी उनकी प्रीत पुरानी, पत्र-पत्र पर डोल उठी है
 
ओस बिन्दुओं घोल उठी है, कल-कल स्वर में बोल उठी है।
</poem>
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